मानवाधिकार रक्षकों पर लांछन लगाने और उन्हें अपराधी ठहराने की प्रवृत्ति से लोहा लेने की तत्काल आवश्यकता

/userfiles/image/Veit_Image-07-21-21.jpeg

गैब्रिएल गैलिंडो

विवरण

: सरकार से असमानता पर ध्यान देने की माँग करते हुए प्रदर्शनकारी कोलंबिया में सड़कों पर निकले हुए हैं (मई 2021)।


कोविड-19 प्रतिबंधों और आपातकालीन उपायों के चलते, सरकार प्रदर्शनकारियों तथा मानवाधिकार रक्षकों (HRD) की मनमानी गिरफ्तारियों को अधिक आसानी से उचित ठहरा सकती है, जिससे उन्हें अपराधी ठहराने का जोखिम बढ़ जाता है। सरकारों के लिए उनकी ऑनलाइन व ऑफलाइन, दोनों प्रकार की गतिविधियों की निगरानी और ट्रैकिंग भी बड़ी आसान हो गई है, जिससे उनके पास बचने के विकल्प कम हो गए हैं।

कोरोना वायरस के लगातार भीषण प्रकोप के बीच मनमाने तरीके से कैद करने और अपराधी ठहराने के परिणाम घातक हो सकते हैं, इस कारण असहमति वाली आवाजों को अनुचित रूप से निशाना न बनने देने तथा बंदी बनाए गए HRD की रिहाई की वकालत करने का महत्व पहले से काफी अधिक बढ़ गया है।

डिजिटल औजारों के बढ़ने से डिजिटल धमकियों में भी बढ़ोतरी हुई है

मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर होने वाली चर्चाओं के ऑनलाइन होने से इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोगों के लिए संचार के नए चैनल खुल गए हैं, जबकि पहले इनमें से अधिकांश लोगों के लिए कोई भी चैनल उपलब्ध नहीं था। कोई-कोई HRD अब बड़ी आसानी से मानवाधिकार परिषद् की बैठक से कनेक्ट हो सकते हैं या अफ्रीकी संघ के कार्यक्रम में अपनी बात रख सकते हैं और इसके लिए उन्हें लंबी दूरी की यात्रा के वित्तीय बोझ की चिंता नहीं करनी पड़ती। हालाँकि, अनेक HRD, समुदाय तथा संगठन यह कह रहे हैं कि उनके लिए अब ऑनलाइन उत्पीड़न, उनकी निजी जानकारियों के उजागर किए जाने, हैकिंग व सेंसरशिप का खतरा और भी बढ़ गया है। प्रोटेक्शन इंटरनेशनल मेसोअमेरिका (Protection International Mesoamerica) में कार्यरत एक सहकर्मी ने टिप्पणी की “हमने इधर देखा है कि डिजिटल सुरक्षा को लेकर पूछताछ करने वाले HRD की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। डिजिटल धमकियों का खतरा उनके लिए लगातार बढ़ने के कारण अब वे उनके प्रति अधिक जागरूक होते जा रहे हैं।”

हाल ही में ब्राजील में प्रोटेक्शन इंटरनेशनल के एक साझेदार संगठन पर फेसबुक व यूट्यूब के सजीव सत्र के दौरान हिंसक और नस्लवादी टिप्पणियों द्वारा हमला किया गया।  रोजा लूज (Rosa Luz) के मामले से यह बात साबित होती है कि अल्पसंख्यक, महिला और LGBTI (स्त्री समलिंगी, पुरुष समलिंगी, उभयलिंगी, पारलिंगी व किन्नर) HRD का मनोबल गिराने के लिए ऑनलाइन विद्वेषपूर्ण व्यक्तिगत हमलों का विशेष रूप से प्रायः प्रयोग किया जाता है। उल्लेखनीय है कि कई बार जान की धमकी मिलने के बाद रोजा लूज को साउ पाउलो शहर छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा था।

महामारी शुरू होने के बाद से, प्रोटेक्शन इंटरनेशनल के कर्मचारियों ने केन्या में इंटरनेट पर डेटा प्रवाह प्रतिबंध, आभासी बैठक में बिन बुलाए उपस्थित हुए व्यक्तियों के द्वारा ऑनलाइन उत्पीड़न की कम से कम चार घटनाओं और बहुत से संस्थागत ईमेल पतों पर फिशिंग प्रयासों की बढ़ती घटनाओं सहित डिजिटल सुरक्षा भंग होने की अनगिनत घटनाओं का अनुभव किया है। प्रोटेक्शन इंटरनेशनल के सूचना प्रौद्योगिकी व्यवस्थापक क्लाउस गोएटफर्ट ने टिप्पणी की “महामारी आने के साथ ही फिशिंग हमलों में भयंकर तेजी देखी गई। जूम जैसी सेवाओं व औजारों का उपयोग करने की अचानक सबको जरूरत पड़ने लगी, किंतु उन पर होने वाले हमलों में भी तेजी देखी गई। न केवल कुछ मानवाधिकार रक्षकों को खुले तौर पर निशाना बनाया गया, बल्कि डेटा उजागर करने और सुरक्षा भंग करने की इन उच्च प्रभाव वाली घटनाओं से हमको तथा हमारे साझेदार संगठनों को समानांतर क्षति भी हुई।”

प्रोटेक्शन इंटरनेशनल के साझेदार संगठनों ने महामारी शुरू होने के बाद से डिजिटल सुरक्षा भंग होने की कम से कम 20 घटनाओं का अनुभव किया है, जिनमें से सात घटनाओं का इंडोनेशिया में हमारी टीम के कार्य पर बुरा प्रभाव पड़ा। PI इंडोनेशिया के सहकर्मियों ने टिप्पणी की “डिजिटल सुरक्षा की समस्या एक गंभीर आशंका है। हर माह, हमारे साझेदार संगठन की एक न एक वेबसाइट हैक हो जाती है। अब ऐसी घटनाएँ और जल्दी-जल्दी हो रही हैं।” योग्यकार्ता में गजदा मदा विश्वविद्यालय (Gajah Mada University) के एक छात्र संगठन को जान की धमकी मिलने और देशद्रोह का आरोप लगाए जाने के बाद विवश होकर एक ऑनलाइन बहस रद्द करनी पड़ी। एक अन्य मामले में रेवियो पात्रा नामक इंडोनेशिया के एक अनुसंधानकर्ता, जो सरकार का मुखर आलोचक था, को व्हाट्सऐप के माध्यम से दंगे भड़काने के झूठे आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया

डिजिटल सुरक्षा भंग होने की घटनाओं के होने से पहले ही उनपर लगाम लगाने के लिए प्रोटेक्शन इंटरनेशनल ने एक डिजिटलीकरण कार्य बल का गठन किया, ताकि डिजिटल दुर्घटनाओं की विशेष रूप से निगरानी हो सके तथा कर्मचारियों को सुरक्षित संचार औजारों सहित निजता-हितैषी मंचों के उपयोग और उनकी हिमायत के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। महामारी शुरू होने के बाद से अब तक प्रोटेक्शन इंटरनेशनल के लगभग 80% साझेदार संचार के अधिक सुरक्षित चैनलों को अपना चुके हैं, किंतु वित्तीय कठिनाइयों के चलते अनेक HRD को अभी भी ऐसा कर पाने में अड़चन महसूस हो रही है। उदाहरण के लिए, कुछ फोन प्लान में व्हाट्सऐप मुफ्त में ही शामिल रहता है, जबकि संदेश ऐप का सिग्नल नामक अधिक सुरक्षित विकल्प नहीं शामिल रहता। निजता अभी भी विलासिता की सामग्री बनी हुई है, जो केवल इसका खर्च वहन कर पाने में सक्षम HRD को ही उपलब्ध है।

जिन HRD की इंटरनेट तक पहुँच नहीं है, उन्हें संरक्षण देने की जरूरत के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया तो और भी असंतोषजनक व असंतुलित बनी हुई है। जिन ग्रामीण HRD के साथ प्रोटेक्शन इंटरनेशनल कोरोना के प्रकोप के पूर्व से ही संपर्क में बना हुआ था, उनसे हमारी टीमों ने रेडियो व पॉडकास्ट के माध्यम से संचार करना शुरू कर दिया।

महामारी के दौरान HRD को इस समय जो मनोसामाजिक और लिंग-आधारित संघर्ष करने पड़ रहे हैं, उनसे संबंधित तथा निवारक संरक्षण के महत्व से संबंधित जानकारी देने के लिए PI मेसोअमेरिका ने ग्वाटेमाला में स्पेनिश और मैम, केक्ची व कैंजोबल की माया भाषाओं में एक संदेश शृंखला का प्रसारण किया। इसका लक्ष्य वास्तविक और अनुभूत, दोनों प्रकार के अलगाव की भावना में कमी करना तथा दुर्गम स्थानों तक आवश्यक जानकारी को पहुँचाना था। यह बहुत जरूरी है कि सरकारें बिल्कुल ही हाशिए पर पड़े हुए और कोविड-19 प्रतिबंधों के कारण अलग-थलग हुए लोगों, विशेषकर भौतिक व डिजिटल रूप से कटे हुए लोगों पर अपने संरक्षण प्रयासों को केंद्रित करें।

 

विवरण: कांगो जनतांत्रिक गणराज्य में शांति स्थापना और हानि न पहुँचाने के सिद्धांत पर प्रशिक्षण सत्र. स्रोत: एफ्रेम चिरुजा

 

 

राजनीतिक बंदियों के लिए नई प्रकार की यातना का खतरा

सरकारों का यह भी दायित्व है कि वे अपनी देखभाल के भीतर आने वाले लोगों का संरक्षण करे। इस घातक महामारी के दौरान बंदी बनाए जाने की पीड़ा न केवल एक क्रूर दंड है, बल्कि भय और स्वतः-सेंसरशिप पैदा करने का एक नया और विचित्र तरीका भी है। भीड़ भरी बंद जगहों में कोविड-19 के तेजी से फैलने के खतरे के कारण अनेक सरकारें बंदियों की अस्थायी रिहाई के कार्यक्रम शुरू करने के लिए प्रेरित हुईं। हालाँकि, फ्रंट लाइन डिफेंर्डर्स (अग्रिम पंक्ति के रक्षक) के अनुसार अनेक सरकारों ने अधिकांशतः उन बंदियों को रिहा नहीं किया, जिन्हें कार्यकर्ता होने के कारण बंदी बनाया गया था। होना तो यह चाहिए था कि सरकारें राजनीतिक रूप से असहमत लोगों और पत्रकारों की स्वतंत्रता के अन्यायपूर्ण हनन का अंततः प्रतिकार करने के एक अवसर के रूप में इस महामारी का उपयोग करतीं, लेकिन अपना शिकंजा हटाने से इनकार करने वाली हुकूमतों के विरुद्ध खुलकर बोलने वालों के साथ क्या हो सकता है, HRD के साथ अपने दुर्व्यवहार के बहाने अनेक सरकारें लगातार इसे बताने में लगी रहीं।

उदाहरण के लिए, श्री जरमेन रुकुकी बुरुंडी के एक HRD हैं, जिन्होंने सिर्फ अपने कार्यकर्ता होने के कारण लगभग चार साल तक कारावास झेला है। उन्होंने जाबुत्सा तुजाने (Njabutsa Tujane) नामक एक समुदाय-आधारित संस्था की स्थापना की है, जिसका काम गरीबी और अकाल से लड़ना तथा स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुँच प्रदान करना है। श्री रुकुकी को ‘राष्ट्रीय आसूचना सेवा’ ने 13 जुलाई 2017 को “बगावत,” “देश की सुरक्षा से खिलवाड़” और "राष्ट्राध्यक्ष पर हमले" के आरोप लगाकर गिरफ्तार किया था। जरमेन जी से पूछताछ की गई तथा 14 दिनों तक उन्हें वकील या परिवार से मिलने नहीं दिया गया। कई महीने की प्रतीक्षा के बाद, श्री रुकुकी को 32 वर्ष के कारावास का दंड सुनाया गया, जबकि कोई ठोस प्रमाण कभी प्रस्तुत नहीं किया गया था। बुरुंडी के इतिहास में अभी तक किसी भी कार्यकर्ता को बत्तीस वर्ष के कारावास का दंड नहीं मिला था, इस प्रकार यह कठोरतम दंड का क्रूर उदाहरण है।

बुरुंडी में राजनीतिक बंदियों के लिए परिस्थिति भयानक है। कोविड-19 का प्रसार रोकने के उपाय करने में बुरुंडी की सरकार ने कोई तेजी नहीं दिखाई है, इस बात पर विचार करने पर यह परिस्थिति और भी भयानक लगती है। महामारी के दौरान जेल की छोटी और तंग कोठरी में बंद किए जाने के कारण मनमाने तरीके से कैद किए गए HRD तथा उनके परिवारी जनों को निःसंदेह भीषण मनोवैज्ञानिक व भावनात्मक संताप का अनुभव करना पड़ा है। जरमेन जी के मामले में ऐसी  खबरें आई थीं कि गोजी (Ngozi) जेल, जहाँ उन्हें बंद किया गया था, वहाँ पर जून 2020 में किसी ‘अज्ञात वायरस’का प्रकोप हुआ था। बुरुंडी की जेलों में क्षमता से अधिक बंदियों के होने और साफ-सफाई की खराब स्थितियों पर विचार करने पर यह परिस्थिति और भी चिंताजनक लगती है। पिछले वर्ष प्रोटेक्शन इंटरनेशनल ने—FIDH के #ForFreedom (मुक्ति हेतु) अभियान और एमनेस्टी इंटरनेशनल के Write for Rights (अधिकारों के लिए लिखें) अभियान सहित— कोविड के दौरान बंदी HRD को छोड़ने के लिए अन्य संगठनों द्वारा चलाए गए अभियानों का समर्थन किया है तथा श्री रुकुकी के मामले पर ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने स्वयं के #StayWithDefenders (मानवाधिकार रक्षकों के साथ खड़े हों) अभियान को और धार दी है, किंतु बुरुंडी की सरकार ने छोटी-मोटी राहत देने की भी इच्छा नहीं जताई है। ताहंगवा (Ntahangwa) स्थित बुरुंडी के अपील न्यायालय ने उनके मामले में फैसले की घोषणा को लगातार लटकाए रखा कि उनको दिए गए कारावास के दंड में कोई बदलाव होगा या नहीं, जो निष्पक्ष सुनवाई के उनके अधिकार का एक बार फिर से उल्लंघन है। अंतिम तिथि बीतने के बाद भी 62 दिन की प्रतीक्षा कराकर यह घोषणा की गई कि उनका दंड 32 से घटाकर एक वर्ष का कर दिया जाएगा। श्री रुकुकी को अब छोड़ दिया गया है और अब वह घर वापस जा सकते हैं।

अफ्रीका के लिए प्रोटेक्शन इंटरनेशनल की क्षेत्रीय निदेशिका सूजन मुरिउंगी ने बताया “इस फैसले ने मानवाधिकार रक्षकों के अपराधीकरण को अमान्य करने के लिए महत्वपूर्ण नजीर स्थापित की है। जरमेन जी की रिहाई से बुरंडी और पूरे अफ्रीका महाद्वीप में कार्यरत सभी मानवाधिकार रक्षकों को यह सशक्त संदेश गया है कि - आपका कार्य विधिसम्मत है, आपके कार्य का महत्व है और आपको मानवाधिकारों की रक्षा करने का अधिकार है।”

 

तस्वीर विवरण: संयुक्त राष्ट्र के पूर्व विशेष संवक्ता मिशेल फॉर्स्ट PI के #StayWithDefenders अभियान में सहभागिता करके कोविड काल में मानवाधिकार रक्षकों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर कर रहे हैं

 

कैद किए गए HRD के अधिकारों पर सर्वाधिक पाबंदियाँ लगा दी गई हैं (जैसा कि श्री रुकुकी के मामले में हुआ था), हमें न केवल उनकी लगातार हिमायत और उनके साथ बेहतर समन्वय करना चाहिए, बल्कि हमें निवारक संरक्षण पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि HRD की परिस्थितियों के इतनी भयानक होने की संभावना ही न रह जाए--इसमें निगरानी-रोधी कार्य और ऑनलाइन व ऑफलाइन नेटवर्क बनाना भी शामिल है। सरकारों को HRD के लिए ऐसी बेहतर नीतियों और तंत्रों को सुदृढ़ बनाना चाहिए, जो व्यापक, लिंग संवेदी और अंतरक्षेत्रकीय तरीके से संरक्षण पर ध्यान दें, ताकि सजावटी ‘आपातकालीन प्रोटोकाल’ संबंधी आरोप के भय के बिना डिजिटल और भौतिक जगत में विरोध करने का अधिकार बरकरार रहे। जो नागरिक देश को पुनः बेहतर बनाने के काम में लगे हैं, सरकारों को उनकी निगरानी करने, उन्हें नजरबंद करने और जेल में डालने की बजाय उन्हें सशक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए।